हम बीमार क्यों होते है ?

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हम बीमार क्यों होते है ? : जीवनशैली, आहार और स्वदेशी चिकित्सा की भूमिका

स्वास्थ्य जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। एक स्वस्थ शरीर ही मनुष्य को उसके सभी कार्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। परंतु, बदलते समय और जीवनशैली के साथ बीमारियां भी बढ़ती जा रही हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने बहुत प्रगति की है, लेकिन इसके बावजूद हम अक्सर बीमार पड़ जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हम बीमार क्यों पड़ते हैं? इसके पीछे कई कारण होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से हमारी जीवनशैली, आहार, तनाव और पर्यावरणीय कारक शामिल हैं। इस लेख में हम बीमारियों के कारणों को समझने का प्रयास करेंगे और उनके समाधान के कुछ प्राकृतिक और स्वदेशी उपायों पर चर्चा करेंगे।

त्रिदोषों का असंतुलन: बीमारियों का प्रमुख कारण

हमारे शरीर का संतुलन आयुर्वेद के अनुसार तीन प्रमुख दोषों—वात, पित्त और कफ—पर निर्भर करता है। इन त्रिदोषों का संतुलन बिगड़ने पर ही हम बीमार पड़ते हैं। आयुर्वेद में यह माना जाता है कि शरीर की हर समस्या इन त्रिदोषों के असंतुलन से होती है।

वात, पित्त और कफ का संतुलन क्यों बिगड़ता है?

हमारी जीवनशैली और आहार इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। अगर हम अपने शरीर की प्रकृति के अनुसार आहार और जीवनशैली अपनाएं तो हम बीमारियों से बच सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति की प्रकृति पित्त प्रधान है और वह मसालेदार और तले हुए खाद्य पदार्थ ज्यादा खाता है, तो उसका पित्त और अधिक बढ़ सकता है, जिससे एसिडिटी, पित्ताशय की समस्या और त्वचा संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।

वहीं कफ प्रधान व्यक्ति को अगर ठंडी और चिकनाई युक्त चीजें अधिक मिलती हैं, तो उसे सर्दी-जुकाम, खांसी और अन्य कफजनित बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इसी प्रकार, वात प्रधान व्यक्ति को अगर ठंडी और सूखी चीजें अधिक मिलती हैं, तो उसकी वात बढ़ सकती है, जिससे गैस, जोड़ो का दर्द और मांसपेशियों में खिंचाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

मौसम परिवर्तन और बीमारियां

मौसम परिवर्तन से भी बीमारियां होती हैं। जब सर्दी, गर्मी, और बरसात का मौसम बदलता है, तो हमारा शरीर वातावरण के अनुकूल खुद को ढालने में समय लेता है। ऐसे समय में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है और हम सर्दी-जुकाम, बुखार, और अन्य मौसमी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

मौसम में बदलाव के समय अगर हम अपने खान-पान और दिनचर्या का ध्यान रखें तो इन बीमारियों से बचा जा सकता है। जैसे सर्दियों में हमें गर्म भोजन और गरम पानी का सेवन करना चाहिए, जबकि गर्मियों में ठंडी चीजों और तरल पदार्थों पर जोर देना चाहिए।

अनियमित खान-पान और बेमेल आहार

बीमार पड़ने का एक और प्रमुख कारण है—अनियमित खान-पान। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग सही समय पर खाना नहीं खाते, और जब खाते हैं तो बिना सोचे-समझे कुछ भी खा लेते हैं। बाहर का तला-भुना, अधिक मसालेदार, बासी और मिलावटी भोजन शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होता है।

आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति की एक विशिष्ट प्रकृति होती है, जिसे वात, पित्त और कफ के आधार पर जाना जाता है। अगर हम अपनी प्रकृति के अनुसार आहार लें, तो हम बीमारियों से दूर रह सकते हैं।

जीवनशैली और दिनचर्या

हमारी आधुनिक जीवनशैली भी बीमारियों का एक बड़ा कारण है। देर रात तक जागना, सुबह देर से उठना, व्यायाम न करना, और अत्यधिक तनाव लेना हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। आज की दुनिया में हर कोई किसी न किसी तनाव में जी रहा है, जो शरीर को धीरे-धीरे बीमार बनाता है।

योग और प्राणायाम जैसी प्राचीन विधियां हमारे शरीर और मन को संतुलित रखने में मदद करती हैं। अगर हम नियमित रूप से योगासन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें, तो हमारा शरीर और मन दोनों स्वस्थ रह सकते हैं।

रासायनिक खाद और कीटनाशक: एक छिपा हुआ खतरा

हमारी बीमारियों का एक और बड़ा कारण है—रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग। आजकल हम जो अनाज, फल, और सब्जियां खाते हैं, उनमें भारी मात्रा में रसायन होते हैं। ये रसायन हमारी खाद्य श्रृंखला के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं।

दूध, घी, तेल, और मसालों में भी मिलावट आजकल एक बड़ी समस्या बन चुकी है। यह मिलावट शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होती है और धीरे-धीरे गंभीर बीमारियों का कारण बनती है।

आधुनिक बीमारियां और उनकी दवाइयां

बीमारियां मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं। पहली वे बीमारियां जो जीवाणुओं, वायरस या फंगस से होती हैं, जैसे कि टी.बी., टायफाइड, मलेरिया, निमोनिया आदि। इन बीमारियों के लिए दवाइयां विकसित हो चुकी हैं और इन्हें जल्दी ठीक किया जा सकता है।

दूसरी तरह की बीमारियां वे होती हैं जो शरीर में बिना किसी जीवाणु या वायरस के होती हैं, जैसे एसिडिटी, दमा, उच्च रक्तचाप, गठिया, मधुमेह, प्रोस्टेट, और कर्क रोग (कैंसर)। इन बीमारियों का कारण स्पष्ट नहीं होता, इसलिए इनकी दवाइयां भी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाई हैं।

स्वदेशी चिकित्सा का महत्व

आधुनिक चिकित्सा के बावजूद, लोग स्वदेशी चिकित्सा की ओर वापस लौट रहे हैं। आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में ऐसी कई बीमारियों का समाधान मिलता है, जिनके लिए आधुनिक चिकित्सा में अभी तक कोई पूर्ण समाधान नहीं है।

आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति की एक विशिष्ट प्रकृति होती है, और अगर हम अपनी प्रकृति के अनुसार आहार और जीवनशैली अपनाएं, तो हम कई बीमारियों से बच सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति की वात प्रधान प्रकृति है, तो उसे वात को नियंत्रित करने वाले आहार और दिनचर्या का पालन करना चाहिए। इसी प्रकार, पित्त और कफ प्रधान लोगों को अपनी प्रकृति के अनुसार आहार और दिनचर्या को अपनाना चाहिए।

योग और प्राणायाम: बीमारियों से बचाव का प्राचीन उपाय

योग और प्राणायाम शरीर को स्वस्थ और निरोगी रखने के सबसे प्रभावी और प्राचीन उपाय हैं। योगासन शरीर की मांसपेशियों को लचीला बनाते हैं, रक्त संचार को बढ़ाते हैं, और तनाव को कम करते हैं।

प्राणायाम के नियमित अभ्यास से हमारे श्वसन तंत्र में सुधार होता है और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। प्राणायाम, विशेष रूप से अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भ्रामरी, न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी होते हैं।

बीमारियों से बचने के उपाय

बीमारियों से बचने के लिए हमें अपनी जीवनशैली और खान-पान में सुधार लाने की आवश्यकता है। यहाँ कुछ प्रमुख सुझाव दिए गए हैं:

आहार संतुलित और स्वच्छ रखें: ताजे फल, सब्जियां और संपूर्ण अनाज खाएं। मिलावटी और जंक फूड से बचें।

व्यायाम करें: नियमित रूप से योगासन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें।

समय पर खाना और सोना: अपने खान-पान और सोने की दिनचर्या नियमित रखें। देर रात तक जागने और सुबह देर से उठने से बचें।

तनाव से बचें: तनाव को कम करने के लिए ध्यान, प्राणायाम और अन्य मानसिक शांति की तकनीकों का प्रयोग करें।

प्राकृतिक चिकित्सा अपनाएं: आयुर्वेद और अन्य स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों को अपने जीवन में शामिल करें।

निष्कर्ष

हम बीमार क्यों पड़ते हैं? इसका उत्तर हमारी जीवनशैली, आहार और पर्यावरणीय परिस्थितियों में छिपा हुआ है। अगर हम अपने शरीर की प्रकृति और मौसम के अनुसार आहार और दिनचर्या अपनाएं, तो हम बीमारियों से बच सकते हैं। इसके साथ ही, स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियां, जैसे आयुर्वेद और योग, हमारे शरीर को बीमारियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

स्वस्थ रहना हमारे हाथ में है, बस हमें अपनी दिनचर्या और खान-पान में कुछ छोटे-छोटे सुधार करने की आवश्यकता है। योग, प्राणायाम, स्वदेशी चिकित्सा और संतुलित आहार का पालन करके हम एक स्वस्थ और दीर्घायु जीवन जी सकते हैं।

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